राष्ट्रेन्दु शेषेन्द्र पर समावर्तन का एकाग्र
समावर्तन के लिए यह अत्यंत शुभ प्रसंग है कि तेलुगु के महाकवि और राष्ट्रेन्दु स्व. शेषेन्द्र शर्मा के कृतित्व और व्यक्तित्व से उसके पाठक रूबरू होने जा रहे है।
शेषन्द्र जी के यशस्वी पुत्र श्री सात्यकि जी के माध्यम से ही उनके महाकाव्य 'मेरी धरती : मेरे लोग' का हिंदी अनुवाद (अनुवादक श्री ओंप्रकाश निर्मल) का द्वितीय संस्करण (अक्टूबर 2018) प्राप्त हुआ था। निश्चित ही यह एक अद्वितीय काव्य ग्रंथ है जो चमत्कृत तो करता ही है, काव्य सर्जकों को आईना दिखाता है, प्रेररित करता है और दीप स्तम्भ बन दिशा दर्शन भी करता है।
चूँकि यह हिंदी अनुवाद स्वयं शेषेन्द्र जी की देखरेख में पूर्ण हुआ था इसलिए यह कहा जाना चाहिए कि इसमें कविता का नया मुहावरा तैयार हुआ है। नई भाषा, नया तेवर और चिरपरिचित प्रसंगों/दृश्यों/मिथकों आदि को सर्वथा नवीन बिम्बों में अनुकूल शब्द दिए गए है। अपनी कई रचनाओं में शेषेन्द्र जी का निश्छल निःस्वार्थ राष्ट्रप्रेम उन्हें सही अर्थो में 'राष्ट्रेन्दु' निरूपित करता है यह अलग बात है कि उन्हें न तो ऐसी किसी उपाधि या पुरस्कार/सम्मान की अभिलाषा रही और अपेक्षा भी नहीं रही।
जहाँ तक उनकी काव्य सर्जना की बात है तो आत्मविश्वास और आत्माभिमान से भरी उनकी वाणी इस सत्य को उकेरती जाती है 'किंकियाता नहीं समुद्र/किसी के चरणों पर झुककर/नहीं जानती तूफान की आवाज/जी हुजूरी/सलाम नहीं करता पर्वत किसी को झुककर/संभवत: मैं धूल हूँ एक मुट्ठीभर/पर जब मैं उठाता हूँ कलम/तो होता है मुझमें उतना ही अहम जितना कि एक देश के फहरते ध्वज मे।" अपनी धरती और अपने लोगों से प्रेम करने वाले राष्ट्रकवि स्व. शेषन्द्र जी के समूचे काव्य व्यक्तित्व को नमन करते हुए हम आभारी हैं सात्यकि जी के जिन्होंने कविश्रेष्ठ शेषेन्द्र जी के कृतित्व को और व्यक्तित्व पर एकाग्र हेतु अपेक्षित सामग्री उपलब्ध करायी और हमारे पाठकों को लाभान्वित किया।
- श्रीराम दवे
संपादक
समावर्तन : मासिक पत्रिका : जनवरि 2019
http://samavartan.com/https://archive.org/details/saatyaki_gmail_201901----------
युग-प्रवर्तक महाकवि राष्ट्रेन्दु शेषेन्द्र शर्मा
"मेरी धरती - मेरे लोग "
(20 अक्तूबर 1927 को तटीय आंध्रप्रदेश के पश्चिम उदयगिरि में जन्मे शेषेन्द्र शर्मा की काव्य-प्रतिभा, संगठन-शक्ति और चिंतनशीलता की ख्याति देश-काल की सीमाएँ पार कर चुकी है। कवि-सेना आंदोलन के सूत्रधार 'गुरिल्ला' तथा 'मेरी धरती : मेरे लोग' जैसी अमर- -कृतियों के उत्स, साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित, युवा क्रांतिकारियों के चहेते गुण्टूरु शेषेंद्र शर्मा के रूपकों और प्रतीकों की तुलना आदि कवि वाल्मीकि और कालिदास से की जा सकती है। इनके बिम्ब अप्रतिम हैं। प्रकृति और समाज के सामंजस्य की वैचारिक चैनल पर प्रस्तुति इन्हें विष्वस्तर पर स्थापित कर देने में सक्षम है।)
कुछ साहित्यकार ऐसे होते हैं जो अपने युग से प्रभावित होकर चलते हैं, परंतु कुछ ऐसे भी साहित्यकार होते हैं, जो युग से प्रभावित न होकर अपने विलक्षण व्यक्तित्व द्वारा युग को ही प्रभावित करके उसे अपने साथ ले चलते हैं। शेषेन्द्र दूसरी कोटि के साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपनी क्रांतिकारी चेतना द्वारा तेलुगु-काव्यधारा में एक नया मोड़ उपस्थित किया है। उन्हों तेलुगु काव्य-साहितय में विप्लवी नवयुवकों की "कवि-सेना" की और एक नूतन कवि: धर्म का प्रवर्तन किया। जो "कवि-सेना-मैनिफैस्टों" के नाम से प्रसिद्ध है। फलतः शेषेन्द्र विप्लवी कवि और नवयुवकों के हृदय-सम्राट बन गए। वास्तव में वे युग-प्रर्वतक महाकवि हैं।
शेषेंद्र सच्चे क्रांतिकारी महाकवि हैं। यद्यपि वे मनसा-वाचा-कर्मणा सच्चे साम्यवादी हैं परंतु उनका कविता किसी वाद विशेष से प्राभावित नहीं रहा हैं। उनकी स्पष्ट मान्यता है कि जनतंत्र में किसी राजनीतिक दल या राजनैतिक नेता से समाज में क्रंति संभव नहीं है। राजनीति में सर्वत्र भ्रष्टाचार एवं स्वार्थ की दुर्गंध व्याप्त है। जन-कल्याण की भावना आडम्बर मात्र है। इसीलिए महाकवि कहते हैं:
"मेरे देश में नेतृत्व हो किंतु मेरा। मैं इसे राजनीतिज्ञों के हाथों में नहीं सौंप सकता।” यह नव विचार बिंदु है, जहाँ पर यूनान के सुप्रसद्ध दार्शनिक प्लेटो ने गणतंत्र नामक ग्रंथ लिखा जिसमें उन्होंने राज्य-सत्ता के सूत्रों को महात्माओं, साधू-संतों के हाथों सौंपने की वकालत की है, दोनों का संगम हो जाता है।
समाज में क्रांति तो केवल कवि के द्वारा ही संभव है। इसीलिए कवि को स्वतंत्र होना चाहिए। उसे किसी राजनैतिक पार्टी से नहीं जुड़ना चाहिए। वह पार्टी चाहे जितनी भी उत्कृष्ट क्यों न हो। पार्टियों से जुड़ी संस्थाएँ जेबी होती हैं। सच्चा कवि किसी भी जेब में नहीं बैठता। कवि की प्रतिबद्धता किसी पार्टी से न होकर संपूर्ण मानव-जाति से होती है।
शेषेन्द्र जी 'कवि-धर्म पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं। "कवि हमेशा मानव-जाति से प्रतिबद्ध होकर सूर्य की भाँति देदीप्यमान और कर्मसाक्षी होता हैं। वह कदाचित् सत्य कहने में संकोच नहीं करता। उसका परिणाम चाहे जो भी निकले, कितना भी भयानक क्यों न हों।"
कवि के जीवन में 'करुणा' का अत्यधिक महत्व है। 'करुणा' कवि का मूल धर्म है. 'करुणा' और 'कवि' दोनों भिन्न नहीं, अभिन्न हैं। इस तत्य को शेषेंद्रजी उद्घाटित करते हैं "कवि का कवि-हृदय करुणा से, करुणा रस से रूपायित होकर उदित होता हैं। यही कारण है कि हमारे यहाँ आदिकवि वाल्मीकि हुए। करुण कवि शोकमग्न होता है. शोक में से क्रोध का जन्म स्वाभाविक है। इसी क्रोध के वशीभूत होकर वह किरात को शाप देता है वाल्मीकि की कविता प्रथम प्रोटैस्ट कविता है। जो कवि अधर्म के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद नहीं करता, वह कवि नहीं हो सकता है।"
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ऐसा प्रतीत होता है कि शेषेन्द्रजी के काव्य का मूलस्रोत आदिकवि वाल्मीकि की तरह करुण एवं आक्रोश रहा है। किरात द्वारा क्रौंच पक्षी की हत्या के प्रसंग में आदिकवि के हृदय में क्रौंच पक्षी के प्रति जिस प्रकार करुणा और निर्दयी किरात के प्रति आक्रोश सहित शाप पैदा हो गया था, उसी प्रकार महाकवि शेषेंद्र हृदय में अत्याचारी - शोषक दैत्यों के प्रति आक्रोश और धरतीपुत्र किसानों के प्रति करुणा की भावना पैदा हो गयी। फलतः भ्रष्टाचार- तंत्र को समूल नष्ट करने हेतु वे 'गुरिल्ला-सेना' का आहवान करते हैं और दूसरी ओर करुणा से उत्प्रेरित होकर महाकाव्य "मेरी धरती : मेरे लोग" की रचना करते हैं। गुरिल्ला के माध्यम से उन्होंने से महाकवि अपनी मातृभूमि और उसके सपूत किसानों के हृदयों में विलीन हो जाते हैं।
“मैं धरती में लीन हो गया हूँ। वृक्ष और धान्य के समान।
जो इस धरती में समाहित है। मैं उगता हूँ और धान और, फल की तरह इस देश में जीता हूँ। मैं इस देश को जोतनेवाला किसान हूँ।
मेरा शरीर पृथ्वी है। जब ग्रीष्म में सूर्य क्रोधित होता है तो हम दोनों जलते हैं और पानी के लिए तरसते हैं।"
देश में से भ्रष्टतंत्र का सफाया करने के लिए शेषेन्द्र सशस्त्र क्रांति की वकालत करते हैं और फिर इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं :-
"कोई उसे मार नहीं सकता इसकी मृत्यु
जिस पर खुश होता हैं शत्रु वह जीत नहीं है शत्रु की वह धारण करता है
असंख्य वीरों का रूप
उसका एक-एक रक्त-1- बिंदु
सींच रही है जिसे धरा
फेकेंगी बाहर
एक-एक वीर वंश-वृक्ष को । "
ओ गुरिल्ला ! ओ गुरिल्ला ! औ गुरल्लिा!
वास्तव में गुरल्लिा एक नया क्रांतिगीत, एक नया काव्य-दर्शन एवं एक नया सौंदर्य-सास्त्र है।
'मेरी धरती : मेरे लोग' और 'गुरिल्ला' काव्य-रचना के बाद भारतीय साहित्य गगन में प्रभाण्डलमय व्यक्तित्व के साथ दिनकर की तरह शेषेन्द्र जी चमक उठे। प्रादेशिक स्तर से ऊपर उठकर राष्ट्रीय कवि बन गए। इतना ही नहीं, राष्ट्र की सीमाओं को लांघ कर विश्वकवि बन गए। एक यूरोपीय समीक्षक का अभिमत है "केवल टैगोर और गाँधी ही अपने देश की सीमाएँ पार करके विस्तृत विश्व में पहुँचकर वैश्विक नहीं है, बल्कि शेषेन्द्र का महाकाव्य “मेरी धरती : मेरे लोग" इसका एक उदाहरण है।"
प्रसिद्ध समीक्षक डॉ. सरगु कृष्णूर्ति के मतानुसार और तब हमारे हृदय का हृदय बोल उठता है शेषेन्द्र या तो वाल्मीकि हैं या कालिदास । हृदय की यह स्वीकृति कविता की सब से बड़ी विजय है । शेषेन्द्र केवल कवि-सम्राट ही नहीं, बल्कि हृदयों के भी विजेता रस-सम्राट अंगार भी हैं. शेषेंद्र अपने युग सूरज भी हैं। चाँद भी हैं, अंगार भी हैं, मंदिर भी हैं। वे कवि-कुलकेतु हैं और मन तथा वाणी के सेतु हैं। (राष्ट्रेंदु शेषेंद्र पृ-118)
यह उल्लेखनीय है शेषेन्द्र जी की काव्य-साधना की तीन महानतम उपलब्धियाँ रही है : (1) सन् 1994 में अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन कलकत्ता में राष्ट्रीय सांस्कृतिक एकता पुरस्कार के रूप में “राष्ट्रेंदु” की आपाधि से अलंकृत करना।
(2) उसी वर्ष 1994 में केन्द्रीय साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कार विभूषित करना । (3) सन् 1999 में शेषेंद्र शर्मा को केन्द्रीय साहित्य अकादमी द्वारा फैलोशिप विशिष्ट सदस्य प्रदान करना।
महाकवि शेषंद्र का सारा जीवन संघर्षमय रहा है । प्रतिकूल परिस्थितियों ने उनके व्यक्तित्व को दूर्धर्ष के रूप में उभारा है। काल की चुनौतियों उन्हें 'अनल-कवि' बना दिया है। अपनी कविता-निर्माण की प्रक्रिया के संबंध मेंशेषेन्द्र जी बताते हैं।
"जब भी मैं कही अत्याचार देखता हूँ, उसके विरुद्ध खड़ा होना, संघर्ष करना और उससे तब तक लड़ना, जब तक विजय नहीं मिलती। पर मेरी विजय किसी अच्छी कविता के रूप में आती है। इसी उत्तेजना, संघर्षशक्ति और क्रोध के मिले-जुले रूप में मेरे अंतर में एक हल्का-सा स्पंदन होता है जो धीरे-धीरे विकसित होता है, जैसे गर्भ में बच्चा पल-बढ़ रहा हो, यह विकास धीरे-धीरे एक बोझ बन जाता है, बढ़ता तूफान और फिर वण्डर में परिवर्तित हो जाता है।"
आंध्रप्रदेश के नेल्लूर जनपद तोटल्लिगुडूर में श्रीमती अम्मयम्मा एवं श्री सुब्रह्मण्यम शर्मा के परिवार में 20 अक्तूबर 1927 को जन्मे शेषेन्द्र शर्मा ने स्थानीय विद्यालयों से शक्षा आरंभ कर मद्रास विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की उपाधि अर्जित की। प्रांतीय सेना में रहते हुए हैदराबाद नगर के म्युनिसिपल कमिश्नर पद से सेवा - निवृत हुए। राष्ट्रीय-साम्य और सारल्य से प्रतिबद्ध महाकवि शेषेंद्र शर्मा ने काव्य-क्षेत्र में 'आधुनिक महाबारत', 'गुरिल्ला' महाकाव्य 'मेरी धरती : मेरे लोग' सौंदर्य शास्ज्ञ में 'कवि-सेना मैनिफेस्टो' अनुसंधान शास्त्र में ‘षोडडशी' जैसी लगभग 40 कृतियों के माध्यम से इन सभी क्षेत्रों में नए कीर्तिमान एवं मापदण्ड स्थापित किय। वास्तव में शेषेन्द्र प्रगितशील जनकवि और प्रखर समीक्षक हैं।
अग्रतारा
विशेषांक 1999
प्रकाशक :
दक्षिण भारत हिन्दी प्रतिष्टान गांधीभवन, हैदराबाद - 500001
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दार्शनिक और विद्वान कवि एवं काव्य शास्त्रज्ञ
शेषेन्द्र शर्मा
20 अक्तूबर 1927 - 30 मई 2007
Visionary Poet of the Millennium
http://www.seshendrasharma.weebly.comमातापिता : अम्मायम्मा, जी. सुब्रह्मण्यम
भाईबहन : अनसूया, देवसेना, राजशेखरम
धर्मपत्नि : श्रीमती जानकी शर्मा
संतान : वसुंधरा, रेवती (पुत्रियाँ) वनमाली सात्यकि (पुत्र)
बी.ए : आन्ध्रा क्रिस्टियन कालेज गुंटूर आं. प्र.
बी.एल. : मद्रास विश्वविद्यालय, मद्रास
नौकरी : डिप्यूटी मुनिसिपल कमीशनर (37 वर्ष) मुनिसिपल अड्मिनिस्ट्रेशन विभाग, आ.प्र.
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शेषेन्द्र नामसे ख्यात शेषेन्द्र शर्मा आधुनिक भारतीय कविता क्षेत्रमें एक अनूठे शिखर हैं । आपका साहित्य कविता और काव्य शास्त्र का सर्वश्रेष्ठ संगम है । विविधता और गहराई में आपका दृष्टिकोण और आपका साहित्य भारतीय साहित्य जगत में आजतक अपरिचित है। कविता से काव्यशास्त्र तक, मंत्र शास्त्र से मार्क्सवाद तक आपकी रचनाएँ एक अनोखी प्रतिभा के साक्षी हैं । संस्कृत, तेलुगु और अंग्रेजी भाषाओं में आपकी गहन विद्वत्ता ने आपको बीसवीं सदी के तुलनात्मक साहित्य म...